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महावीर के सिद्धान्त : ८१
कंगन से हार बनने वाले उदाहरण में-- सोना द्रव्य है, भले ही वह प्रस्तुत में औपचारिक द्रव्य है और कंगन तथा हार पर्याय हैं। द्रव्य की अपेक्षा से हर एक वस्तु नित्य है, और पर्याय की अपेक्षा से अनित्य है। इस प्रकार प्रत्येक पदार्थ को न एकान्त नित्य और न एकान्त अनित्य, प्रत्युत नित्यानित्य उभय रूप से मानना ही अनेकान्तवाद है।
सत् और असत् ० यही सिद्धान्त सत् और असत् के सम्बन्ध में है। कितने ही धर्म - सम्प्रदाय कहते हैं- 'वस्तु सत् है ।' इसके विपरीत दूसरे सम्प्रदाय कहते हैं-- 'वस्तु सर्वथा असत् है-' दोनों ओर से संघर्ष होता है, वाग्युद्ध होता है। अनेकान्तवाद ही इस संघर्ष का समाधान कर सकता है। अनेकान्नबाद कहता है कि प्रत्येक वस्तु सत् भी है और असत् भी है, अर्थात् प्रत्येक पदार्थ है भी, और नहीं भी। अपने स्वरूप से है और परस्वरूप ने नहीं है। अपने पूत्र की अपेक्षा से पिता पितारूप से सत् है, और पर-पुत्र की अपेक्षा से पिता पितारूप से असत है। यदि वह पर - पूत्र की अपेक्षा से भी पिता ही है, तो सारे संसार का पिता हो जाएगा, और यह असंभव है। आपके सामने एक कुम्हार है। उसे कोई सुनार कहता है । अब यदि वह यह
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