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८० : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
रहते हैं । वे सूक्ष्म परमाणु दूसरी वस्तु के साथ मिल कर नवीन रूपों का निर्माण करते हैं। वैशाख और ज्येष्ठ के महीने में सूर्य की किरणों से जब तालाब आदि का पानी सूख जाता है, तब यह समझना भूल है कि पानी का सर्वथा अभाव हो गया है, उसका अस्तित्व पूर्णतया नष्ट हो गया है। पानी चाहे अब भाप या गैस या अन्य किसी भी परमाण आदि के रूप में क्यों न हो, पर वह विद्यमान अवश्य है । यह हो सकता है कि उसका वह सूक्ष्म रूप हमें दिखाई न दे, परन्तु यह तो कदापि सम्भव नहीं कि उसकी सत्ता ही नष्ट हो जाए, उसका सर्वथा अभाव ही हो जाए। अतएव यह सिद्धान्त अटल है कि न तो कोई वस्तु मूलरूप से अपना अस्तित्व खो कर नष्ट ही होती है, और न अभाव से भाव हो कर सर्वथा नवीनरूप में उत्पन्न ही होती है। आधुनिक पदार्थ - विज्ञान, अर्थात् साइंस भी इसी सिद्धान्त का समर्थन करता है। वह कहता है---"प्रत्येक वस्तु मूल प्रकृति के रूप में ध्र व-स्थिर है और उससे उत्पन्न होने वाले पदार्थ उसके भिन्न-भिन्न रूपान्तर मात्र हैं।" • हाँ, तो उपर्युक्त उत्पत्ति, स्थिति और विनाशइन तीन गुणों में से जो मूल वस्तु सदा : स्थित रहती है, उसे जैन - दर्शन में द्रब्य कहते हैं, और जो उत्पन्न एवं विनष्ट होता रहता है, उसे पर्याय कहते हैं।
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