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७८ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
रूपाकारों में परिवर्तित होता रहता है । प्रस्तुत में मिट्टी को जो द्रव्य कहा है, वह सर्वसाधारण जिज्ञासुओं के परिबोध के लिए कहा गया है ।
• इतने विवेचन पर से अब यह स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि घड़े का एक स्वरूप विनाशी है और दूसरा अविनाशी । एक जन्म लेता है और नष्ट हो जाता है । दूसरा सदा सर्वदा बना रहता है, नित्य रहता है । अतएव अब हम अनेकांतवाद की दृष्टि से यों कह सकते हैं कि घड़ा अपने आकार को दृष्टि सेविनाशीरूप से अनित्य है और अपने मूल मिट्टी या परमाणु के रूप से - अविनाशीरूप से नित्य है । जैनदर्शन की भाषा में कहें तो यों कह सकते हैं कि घड़ा अपने पर्याय की दृष्टि से अनित्य है और द्रव्य की दृष्टि से नित्य है । इस प्रकार एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी जैसे दीखने वाले नित्यता और अनित्यता के धर्मों को सिद्ध करने वाला सिद्धान्त ही अनेकान्तवाद है ।
उत्पत्ति, स्थिति एवं विनाश
● अच्छा, इसी विषय पर जरा और विचार कीजिए । जगत् के सव पदार्थ उत्पत्ति, स्थिति और विनाशइन तीन धर्मों से युक्त हैं । जैन दर्शन में इनके लिए क्रमशः उत्पाद, ध्रोथ्य और व्यय शब्दों का प्रयोग
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