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महावीर के सिद्धान्त : ७७
आकार-विशेष है। परन्तु यह आकार-विशेष मिट्टी से सर्वथा भिन्न नहीं है, उसी का एक रूप है। क्योंकि भिन्न - भिन्न आकारों - पर्यायों में परिवर्तित होती हुई मिट्टी ही जब घड़ा, सिकोरा, सुराही आदि भिन्नभिन्न नामों से सम्बोधित होती हैं, तो उस स्थिति में परिवर्तित होता हआ आकार मिट्टी से सर्वथा भिन्न कैसे हो सकता है ? इससे साफ जाहिर है कि घड़े का आकार और मिट्टी, दोनों ही घड़े के अपने स्वरूप हैं। अब देखना है कि इन दोनों स्वरूपों में विनाशी स्परूप कौन-सा है और अविनाशी ध्र व रूप कौन-सा है ? यह प्रत्यक्ष दष्टिगोचर होता है कि घड़े का आकार सम्बन्धी स्वरूप विनाशी है, क्योंकि वह बनता और बिगड़ता है। पहले नहीं था, बाद में भी नहीं रहेगा। जैन-दर्शन में इसे पर्याय कहते हैं। और घड़े का जो दूसरा स्वरूप मिट्टी है, वह अविनाशी है, क्योंकि उसका कभी नाश नहीं होता। घड़े के बनने से पहले भो वह मौजद थी, घड़े के बनने पर भी वह मौजद है, और घड़े के नष्ट हो जाने पर भी वह मौजद रहेगी। मिट्टी अपने आप में स्थायी तत्त्व है, उसे बनना और बिगड़ना नहीं है। जैन - दर्शन में इसे द्रव्य कहते हैं । मिट्टी में द्रव्यत्व औपचारिक है। मूल में द्रव्य तो पुद्गल परमाणु है। परमाणु ही वस्तुतः मूल में पुद्गल द्रव्य है, जो पृथ्वी, जल आदि विभिन्न
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