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७६ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
यह विषय जरा गम्भीर है, अतः हमें सूक्ष्म निरीक्षणपद्धति से काम लेना चाहिए। नित्यत्व तथा अनित्यत्व: ० अच्छा, तो पहले नित्य और अनित्य के प्रश्न को ही ले लें। भगवान् महावीर कहते हैं कि प्रत्येक पदार्थ नित्य भी है, और अनित्य भी है। साधारण लोग इस बात से घपले में पड़ जाते हैं कि जो नित्य है, वह अनित्य कैसे हो सकता है ? और जो अनित्य है, वह नित्य कैसे हो सकता है ? परन्तु, महावीर का दर्शन अपने अनेकान्तवादरूपी महान् सिद्धान्त के द्वारा सहज ही में इस समस्या को सुलझा लेता है। ० कल्पना कीजिए--एक घड़ा बना है। हम देखते हैं कि जिस मिट्टी से घड़ा बना है, उसी से और भी सिकोरा, सुराही आदि कई प्रकार के पात्र बनते हैं। हाँ, तो यदि उस घड़े को तोड़ कर हम उसी घड़े की मिट्टी का बना हुआ कोई दूसरा पात्र किसी को दिखलाएँ तो यह कदापि उसको घड़ा नहीं कहेगा। उसी मिट्टी और द्रव्य के होते हुए भी उसको घड़ा न कहने का कारण क्या है ? कारण और कुछ नहीं, यही है
कि अब उसका आकार घड़े जैसा नहीं है । . . ० इस पर से यह सिद्ध हो जाता है कि घड़ा स्वयं
कोई स्वतन्त्र द्रव्य नहीं है, बल्कि मिट्टी का एक
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