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महावीर के सिद्धान्त : ७५
एकान्त आग्रह के कारण पदार्थ के एक - एक अंश अर्थात् धर्म को हो पूरा पदार्थ समझते हैं। इसीलिए दूसरे धर्म वालों से लड़ते - झगड़ते हैं। परन्तु वास्तव में वह पदार्थ नहीं, पदार्थ का एक अंश मात्र है। स्याद्वाद आँखों वाला दर्शन है। अतः वह इन एकान्तवादी अंधे दर्शनों को समझाता है कि तुम्हारी मान्यता किसी एक दृष्टि से ही ठीक हो सकती है; सब दष्टि से नहीं । अपने एक अंश को सर्वथा सब अपेक्षा से ठीक बतलाना और दूसरे अंशों को सर्वथा भ्रान्त कहना, विल्कुल अनुचित है । स्याद्वाद इस प्रकार एकान्तवादी दर्शनों की भूल वता कर पदार्थ के सत्य - स्वरूप को आगे रखता है और प्रत्येक सम्प्रदाय को किसी एक विवक्षा से ठीक बतलाने के कारण साम्प्रदायिक कलह को शान्त करने की क्षमता रखता है। केवल साम्प्रदायिक कलह को ही नहीं, यदि स्याद्वाद का जीवन के हर क्षेत्र में प्रयोग किया जाए, तो क्या परिवार, क्या समाज और क्या राष्ट्र; सभी में प्रेम एवं सद्भावना का राज्य कायम हो सकता है। कलह और संघर्ष का बीज एक-दूसरे के दष्टिकोण को न समझने में ही है। और स्याद्वाद इसके समझने में मदद करता है। ० यहाँ तक स्याद्वाद को समझाने के लिए स्थूल लौकिक उदाहरण ही काम में लाए गए हैं। अब दार्शनिक उदाहरणों का मर्म भी समझ लेना चाहिए।
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