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७२ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
से पुत्र, उसी पुत्र की अपेक्षा से भाई, मास्टर, चाचा, ताऊ, मामा, भानजा हो। ऐसा नहीं हो सकता। यह पदार्थ-विज्ञान के नियमों के विरुद्ध है।
० अच्छा, अनेकान्त एवं स्याद्वाद को समझने के लिए तुम्हें कुछ और बताएँ । एक आदमी काफी ऊँचा है, इसलिए कहता है- कि 'मैं बड़ा हूं।' हम पूछते हैं- 'क्या आप पहाड़ से भी बड़े हैं ?' वह झट कहता है 'नहीं साहब, पहाड़ से तो मैं छोटा हूं। मैं तो इन साथ आदमियों की अपेक्षा से कह रहा था कि मैं बड़ा हूं।' अब एक दूसरा आदमी है। वह अपने साथियो से नाटा है, इसलिए कहता है कि- मैं छोटा हूं।' हम पूछते हैं- 'क्या आप चींटी से भी छोटे हैं ?' वह झट उत्तर देता है-'नहीं साहब, चींटी से तो मैं बड़ा हूं। मैं तो अपने इन कद्दावर साथियों की अपेक्षा से कह रहा था कि मैं छोटा हूँ।' अब तुम्हारी समझ में अपेक्षावाद आ गया होगा कि हर एक चीज छोटी भी है, और बड़ी भी। अपने से बड़ी चीजों की अपेक्षा छोटी है और अपने से छोटी चीजों की अपेक्षा बड़ी है। यह मर्म अनेकान्तवाद के बिना कभी भी समझ में नहीं आ सकता।
० अनेकान्तवाद को समझने के लिए प्राचीन आचार्यों ने हाथी का उदाहरण दिया है। एक गाँव में
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