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७० : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
करने की एक पद्धति है, स्याद्वाद उसी अनेकान्त के हमारे दृष्टिकोण को विस्तृत करता है, हमारी विचार. धारा को पूर्णता की ओर ले जाता है ।
० फल के सम्बन्ध में जब हम कहते हैं कि-फल में रूप भी है, रस भी है, गन्ध भी है, स्पर्श भी है, आदि-आदि, तब तो हम अनेकान्तवाद का उपयोग करते हैं और फल के सत्य का ठीक - ठीक निरूपण करते हैं । इसके विपरीत जब हम एकान्त आग्रह में
आ कर यह कहते हैं कि-फल में केवल रूप ही है, रस ही है, गन्ध ही है, स्पर्श ही है आदि-आदि, तब हम मिथ्या सिद्धान्त का प्रयोग करते हैं। 'भी' में दूसरे धर्मों की स्वीकृति का स्वर छिपा हुआ है, जबकि 'ही' में दूसरे धर्मों का स्पष्टतः निषेध है। रूप भी है-इसका यह अर्थ है कि फल में रूप भी है और दूसरे रस आदि धर्म भी हैं। और रूप ही है-इसका यह अर्थ है कि फल में रूप ही है और दूसरे रस आदि कुछ नहीं हैं। यह 'भी' और 'ही' का अन्तर ही अनेकान्तवाद और एकान्तवाद है। 'भी' अनेकान्तवाद है, तो 'ही' एकान्तवाद । ० एक आदमी बाजार में खड़ा है। एक ओर से एक लड़का आया। उसने कहा- 'पिताजी'। दूसरी ओर से एक बूढ़ा आया । उसने कहा- 'पुत्र' । तीसरी ओर
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