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शान की क्षमता पर भी है, आर भी है, रस
महावीर के सिद्धान्त : ६६ है। अनेकान्तवाद के ही-अपेक्षावाद, कथंचित्वाद, स्याद्वाद और नयवाद आदि नामान्तर हैं ।
० जैन धर्म की मान्यता है कि-प्रत्येक पदार्थ, चाहे वह छोटा - से - छोटा रजकण हो, चाहे बड़ा-से-बड़ा हिमालय या सुमेरु हो, अनन्त धर्मों का समूह है। धर्म का अर्थ-गुण है, विशेषता है। उदाहरण के लिए, आप फल को ले लीजिए। फल में रूप भी है, रस भी है, गन्ध भी है, स्पर्श भी है, आकार भी है, भूख बुझाने की क्षमता है, अनेक रोगों को दूर करने की शक्ति है और साथ ही अनेक रोगों को पैदा करने की भी शक्ति है । कहाँ तक गिनाएँ ? हमारी बुद्धि बहुत सीमित है। अतः हम वस्तु के समस्त अनन्त धर्मों को बिना पूर्ण अनन्त केवल ज्ञान के हुए नहीं जान सकते । परन्तु स्पष्टतः प्रतीयमान बहुत से धर्मों को तो जान ही सकते हैं। 'ही' और 'भी'
० हाँ, तो किसी भी पदार्थ एवं स्थिति को केवल एक पहल से, केवल एक धर्म से जानने का या कहने का आग्रह मत कीजिए। प्रत्येक पदार्थ एवं स्थिति को पृथक - पृथक् पहलुओं से देखिए और कहिए । इसी का नाम अनेकान्तवाद है, स्याद्वाद है । अनेकान्त वाद अनन्त धर्मात्मक वस्तु के सम्बन्ध में विचार
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