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जैन दर्शन का मूल स्वर :
अनेकान्त
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अनेकान्तवाद जैन दर्शन की आधार शिला है । जैन तत्व ज्ञान की सारी इमारत, इसी 'अनेकान्तसिद्धान्त' की नींव पर खड़ी है । वास्तव में अनेकान्तवाद को जैन दर्शन का मूल प्राण तत्त्व ही समझना चाहिए। जैन धर्म में जब भी, जो भी बात कही गई है, वह अनेकान्त की कसोटी पर अच्छी तरह जाँचपरख कर ही कही गई है । यही कारण है कि दार्श निक साहित्य में जैन दर्शन का दूसरा नाम अनेकान्तदर्शन भी है ।
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अनेकान्तवाद का अर्थ है - प्रत्येक वस्तु एवं स्थिति को भिन्न-भिन्न दृष्टिबिन्दुओं से देखना, परखना, समझना । अनेकान्तवाद का यदि एक ही शब्द में अर्थ समझना चाहें, तो उसे 'अपेक्षावाद' कह सकते हैं । जैन धर्म में सर्वथा एक ही दृष्टिकोण से पदार्थ के अवलोकन करने की पद्धति को अपूर्ण एवं अप्रामाणिक समझा जाता है । और एक ही वस्तु में भिन्नभिन्न धर्मों के कथन करने की पद्धति को पूर्ण एवं प्रामाणिक माना गया है । यह पद्धति ही अनेकान्तवाद
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