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६७ : महावीर के सिद्धान्त क्या मनुष्य, क्या पशु, सभी के प्रति उसके हृदय में प्रेम का सागर उमड़ पड़ा । अहिंसा के सन्देश ने सारे मानवीय सुधारों के महल खड़े कर दिए। दुर्भाग्य से आज वे महल फिर गिर रहे हैं । जल, थल, नभ कितनी बार खून से रंगे जा चुके हैं और भविष्य में इनसे भी कहीं अधिक भयंकर रूप से रंगने की तैयारियाँ हो रहीं हैं। एक के बाद दूसरे युद्ध के स्वप्न देखने का क्रम बंद नहीं हुआ है । परमाणु बम-आणविक शस्त्रास्त्रों के आविष्कार की सब देशों में होड़ लग रही है । सब ओर अविश्वास और दुर्भाव चक्कर काट रहे हैं । अस्तु, आवश्यकता है- आज फिर जैन तीर्थंकरों के, भगवान् महावीर के - 'अहिंसा परमोधर्मः' की । मानव जाति के स्थायी सुखों के स्वप्नों को एकमात्र अहिंसा ही पूर्ण कर सकती है, इसके अतिरिक्त और कोई दूसरा विकल्प नहीं है
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अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम् ।"
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