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६६ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
महान् ज्योतिर्मय सन्देश आज भी हमारी आँखों के सामने हैं । यदि हम थोड़ा सा भी सत्प्रयत्न करना चाहें, उक्त सन्देश का सूक्ष्म बीज यदि हम में से कोई देखना चाहें, तो उत्तराध्ययन सूत्र की 'सर्वार्थसिद्धि वृत्ति' तथा आचार्य हरिभद्र की 'आवश्यक वृत्ति' में देख सकते हैं ।
अमृतमय सन्देश : अहिंसा
अहिंसा के अग्रगण्य सन्देशवाहक भगवान् महावीर है । आज दिन तक उनके अमर संदेशों का गौरव गान गाया जा रहा है । आपको मालूम है कि ढाई हजार वर्ष पहले का समय भारतीय संस्कृति के इतिहास में एक अतीव अन्धकारपूर्ण युग माना जाता है। देवीदेवताओं के आगे पशुबलि के नाम पर रक्त की नदियाँ बहाई जाती थीं, मांसाहार और सुरापान का दौर चलता था। अस्पृश्यता के नाम पर करोड़ों की संख्या में मनुष्य अत्याचार की चक्की में पिस रहे थे । स्त्रियों को भी मनुष्योचित अधिकारों से वंचित कर दिया गया था । एक क्या, अनेक रूपों में सब ओर हिंसा का घातक साम्राज्य छाया हुआ था। भगवान् महावीर ने उस समय अहिंसा का अमृतमय सन्देश दिया, जिससे भारत का कायापलट हो गया । मनुष्य राक्षसीभावों से हट कर मनुष्यता की सीमा में प्रविष्ट हुआ ।
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