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६४ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
आए हैं, युद्ध में मरने वालों को स्वर्ग का लालच दिखाते आए हैं, राजा को परमेश्वर का अंश बता कर उसके लिए सब - कुछ अर्पण कर देने का प्रचार करते आए हैं, वहाँ जैन - तीर्थंकर इसके विरोध में काफो सुदृढ़ रहे हैं। 'प्रश्नव्याकरण' और 'भगवतीसूत्र' युद्ध के विरोध में कितने अधिक मुखर हैं ? यदि थोड़ा - सा भी अवकाश प्राप्त कर देखने का प्रयत्न करेंगे, तो विपुलमात्रा में युद्ध - विरोधी विचारसामग्री प्राप्त कर सकेंगे। आप जानते हैं, मगधाधिपति अजातशत्रु कणिक भगवान महावीर का कितना अधिक उत्कृष्ट भक्त था । 'औपपातिक सूत्र' में उसकी भक्ति का चित्र चरम सीमा पर पहुँचा हआ मिलता है। प्रतिदिन भगवान् के कुशल-समाचार जान कर फिर अन्न-जल ग्रहण करना, कितना उग्र नियम है । परन्तु, वैशाली पर कणिक द्वारा होने वाले आक्रमण का भगवान् ने जरा भी समर्थन नहीं किया, प्रत्युत नरक का अधिकारी बताकर उसके पाप - कर्मों का नग्नरूप जनता के सामने रख दिया। अजातशत्रु इस पर रुष्ट भी हो जाता है, किन्तु भगवान महावीर इस बात की कुछ भी परवाह नहीं करते । भला पूर्ण अहिंसा के अवतार रोमांचकारी नर-संहार का समर्थन कैसे कर सकते थे ?
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