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महावीर के सिद्धान्त : ५७
"धर्म के मर्म को समझने वाले ज्ञानी जन अन्य भौतिक साधनों पर तो क्या, अपने तन पर भी मूर्च्छाभाव नहीं रखते ।"
"धन संग्रह से दुःख की वृद्धि होती है, धन ममता का पाश है, और वह भय को उत्पन्न करता है ।" "इच्छा आकाश के समान अनन्त है, उसका कभी भी अन्त नहीं आता ।"
संसार का कारण : तृष्णा
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परिग्रह क्लेश का मूल है, और अपरिग्रह सुखों का मूल । तृष्णा संसार का कारण है, सन्तोष मोक्ष का । इच्छा से व्याकुलता उत्पन्न होती है, और इच्छानिरोध से अध्यात्म सुख । अतः परिग्रह पाप है और अपरिग्रह धर्म है ।
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भगवान् महावीर ने कहा- सुख वस्तु निष्ठ नहीं, विचार निष्ठ है । सुख बाह्य वस्तु में नहीं, मनुष्य की भावना में है । तन आत्मा के अधीन है, या आत्मा तन के ? भौतिकवादी कहता है- शरीर ही सब कुछ है | अध्यात्मवादी कहेगा- यह ठीक नहीं है । यह शरीर ही आत्मा के अधीन है । जो कुछ भी करना है या न करना है, वह सब आत्मा के नियंत्रण में होना चाहिए। जब तक जीवन है, तब तक बाह्य
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