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________________ ५८ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश वस्तुओं का सर्वथा त्याग शक्य नहीं, परन्तु अपनी अनर्गल तृष्णा पर नियन्त्रण अवश्य होना चाहिए। बिना इसके अपरिग्रह का पालन नहीं हो सकेगा। अपरिग्रह धर्म की सबसे पहली मांग है-इच्छा-निरोध की । इच्छा - निरोध यदि नहीं हुआ, तो तृष्णा का अन्त नहीं होगा। इसका अर्थ यह नहीं कि मानव आवश्यक वस्तुओं का, खाने-पीने-पहनने आदि की वस्तुओं का सेवन ही न करे ! करे, किन्तु जीवनरक्षा के लिए, भोग-विलास की भावना से नहीं और वह भी जल-कमल के समान निर्लिप्त हो कर । अपरिग्रह : संस्कृति ० अपरिग्रह का सिद्धान्त समाज में शान्ति उत्पन्न करता है, राष्ट्र में समताभाव का प्रसार करता है, व्यक्ति एवं परिवार में आत्मीयता का आरोपण करता है । परिग्रह से अपरिग्रह की ओर बढ़ना- यह धर्म है, संस्कृति है । अपरिग्रहवाद में सुख है, मंगल है, शान्ति है । अपरिग्रहवाद में स्वहित भी है, परहित भी है । अपरिग्रहवाद अधिकार पर नहीं, कर्तव्य पर बल देता है । शान्ति एवं सुख के साधनों में अपरिग्रहवाद एक मुख्यतम साधन है। क्योंकि वह मूलतः अध्यात्मवादमूलक हो कर भी समाज-मूलक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001422
Book TitleMahavira Siddhanta aur Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Discourse, N000, & N005
File Size6 MB
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