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अलग प्रस्तुत किया है। गृहस्थ - जीवन में भगवान् महावीर के बाल्यकाल से लेकर दीक्षा-काल से पहले तक के जीवन के विविध कथा - चित्र प्रस्तुत किए हैं, जो उनके गृहस्थाश्रम के उच्च आदर्श की झांकी प्रस्तुत करते हैं।
उसके पश्चात् महावीर के साधक-जीवन की अदभुत झांकी प्रस्तुत की है, जिसमें उनके साधकजीवन में आने वाले कष्टों, विघ्नों और उपसर्गों का वर्णन किया है तथा समता की पगडंडी पर चलते हुए वे उनमें से कैसे पार उतरते हैं ? किस प्रकार अपनी तितिक्षा, तपस्या और कष्ट - सहिष्णुता का का परिचय देते हैं ? यह वर्णन अतीव रोमांचक है। . इसके बाद तीर्थकर - जीवन में उन्हें अपनी उत्कृष्ट साधना, घोर तपश्चर्या, अभूतपूर्व समता और स्वीकृत पथ पर दृढ़गति के फलस्वरूप वीतराग और कैवल्य प्राप्त होने का कथाचित्र उनकी साधना की परिपूर्णता की झांकी करा देता है। साथ ही उन्होंने उस समय के समाज, राष्ट्र और प्रचलित धर्मों में क्रान्ति का शंखनाद भी किया। उन्होंने समाज को केवल विचार ही नहीं दिये, चतुर्विध संघ के रूप में उसे व्यवस्थित और पुनर्गठित करके उन विचारों को आचरण में भी क्रियान्वित कराया। इसके लिए समाज और राष्ट्र में प्रचलित मूढ़ मान्यताओं से
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