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________________ महावीर की जीवन-रेखाएं : ५१ जागती मूर्तियां भगवान महावीर के सन्देश का मंगलगान घर - घर सुनाती फिरती होंगी, तब यह पामर दुनिया क्या-से-क्या हो जाती होगी? पत्थर-से-पत्थर हृदय भी पिघल कर मोम बन जाते होंगे, भगवान् के विश्वोपकारी घर्म-सन्देश के आगे वे श्रद्धा से मस्तक झुका देते होंगे। ० भगवान् के संघ में १४००० भिक्षु थे, ३६००० भिक्षुणियाँ थीं, १,५६००० श्रावक थे, और ३,१८००० श्राविकाएँ थीं। प्रसिद्ध तत्त्वज्ञ वा० मो० शाह के भावों में-"जबकि रेल, तार, पोस्ट इत्यादि कुछ भी प्रचार के साधन न थे, तब तीस वर्ष के छोटे-से प्रचारकाल में पादविहार के द्वारा जिस महापुरुष ने इतना विशाल प्रचार-कार्य आगे बढ़ाया, उसके उत्साह, धैर्य, सहनशीलता, ज्ञान, वीर्य व तेज कितनी उच्चकोटि के होंगे? इसका अनुमान सहज ही में किया जा सकता है । तत्कालीन इतिहास की सामग्री को उठा कर देखते हैं, तो चहुंओर त्याग - वैराग्य एवं आत्म - चिन्तन का समुद्र उमड़ता हुआ मिलता है।" निर्वाण ० पावानरेश हस्तिपाल के आग्रह पर भगवान् ने अन्तिम वर्षावास-चातुर्मास पावा में किया हुआ था। धर्म प्रचार करते हुए कार्तिक की अमावस्या आ चुकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001422
Book TitleMahavira Siddhanta aur Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Discourse, N000, & N005
File Size6 MB
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