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५० : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
विश्व-कल्याणकारी रहा है। जीवन का एक क्षण भी इधर - उधर न गवा कर विश्व - कल्याण के लिए वे. सतत् प्रयत्नशील रहे। .
० क्या मगध, क्या बंग, क्या सिन्ध, दूर-दूर तक के प्रदेशों में घूम - घम कर जनता को सत्य का सन्देश सुनाया, उसे सत्पथ पर लगाया। तत्कालीन इतिहास को देखने से पता चलता है कि भगवान जिधर भी जाते थे, मानव समाज का काया पलट होता चला जाता था। भारत का अधिकांश मानव-समाज भोगविलास के गों से निकल कर त्याग, वैराग्य की ऊँचीसे-ऊँची भूमिकाओं पर आरूढ़ हो गया था।
० मेघकुमार, नन्दिषेण जैसे अमित वैभव की गोद में पलने वाले राजकुमारों की टोलियाँ, भिक्षु का बाना पहने, नंगे सिर और नंगे पैरों, हजारों विघ्न-बाधाओं को सहती हुई, जब नगर-नगर में, गाँव-गाँव में, घर. घर में घूमती होंगी, महावीर का पावन सन्देश जनता को सुनाती होंगी, तब कितना भव्य एवं मोहक रहा होगा-उस समय का वह दृश्य ! ० रंग - महलों में जीवन बितानेवाली नन्दा, कृष्णा. जैसी हजारों असूर्यम्पश्या महारानियाँ जव भिक्षणी बनती होंगी, और जब वे त्याग - वैराग्य की जीती
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