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महावीर की जीवन-रेखाएँ : ४६
"संसार में कल्याण करने वाला उत्कृष्ट मंगल एकमात्र धर्म ही है। और, वह धर्म और कोई नहींअहिंसा, संयम एवं तप ही यथार्थ धर्म है।"
० पाठक देख सकते हैं- भगवान ने यह नहीं बतलाया कि जैन-धर्म ही उत्कृष्ट धर्म है, या मैं जो कुछ कह रहा हूँ, वही उत्कृष्ट मंगल है। भगवान् जानते थे कि-कोई भी सत्य-क्षेत्र, काल, व्यक्ति, पंथ या परम्परा आदि के बन्धन में कभी नहीं रह सकता। सच्चा धर्म-अहिंसा है, जिसमें जीव-दया, विशुद्ध प्रेम और भ्रातृ - भाव का समावेश होता है। सच्चा धर्मसंयम है, जिसमें मन और इन्द्रियों को सम्यक नियंत्रित कर स्वात्म-रमणता का आनन्द लिया जाता है। सच्चा धर्म-तप है, जिसमें सेवा, तितिक्षा, आत्मचिन्तन, आत्म-शुद्धि और अध्ययन आदि का समावेश. होता है। जब यह तीनों अंग मिल जाते हैं, तो धर्म की साधना पूर्ण अवस्था पर पहुँच जाती है। फलतः साधक सदा के लिए पाप - कालिमा से पूर्णतः मुक्त हो जाता है, आत्मा से परमात्मा बन जाता है।
जन - जागरण ० अधिक क्या भगवान महावीर का तीर्थंकरकाल से सम्बन्धित ३० वर्ष का जीवन बड़ा ही महत्त्वपूर्ण एवं
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