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४८ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
गृहस्थ से क्षमायाचना करने के लिए उसके द्वार पर जाए, यह न्याय का, निष्पक्षता का, कितना महान् आदर्श है ! भगवान् महावीर जैसे सत्य के प्रखर पक्षधर महापुरुष के नेतृत्व में ही इस प्रकार की ज्वलम्त ऐतिहासिक घटनाओं का निर्माण हुआ करता है ।
विशाल दृष्टि
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भगवान् महावीर का तात्त्विक दृष्टिकोण बहुत विशाल था । वे संकुचित साम्प्रदायिक दलबंदियों को अच्छा नहीं समझते थे । उस समय में जो भयंकर धार्मिक तथा सामाजिक कलह हुआ करते थे, साधारण-सी बातों पर मनुष्यों के रक्त बह जाया करते थे, भगवान् ने उन सबका समन्वय करने के लिए परस्पर सद्भाव स्थापित करने के लिए स्याद्वाद का आवि ष्कार किया। स्याद्वाद का आशय है - प्रत्येक धर्म एवं विचारपक्ष में कुछ न कुछ सचाई का अंश रहा हुआ है । अस्तु, हमें विरोध में न पड़ कर, प्रत्येक व्यक्ति, पक्ष तथा धर्म की सचाई के अंश को आदर
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देना चाहिए और परस्पर प्रेम एवं सद्भाव का वातावरण पैदा करना चाहिए ।
० भगवान् ने धर्म की परिभाषा बतलाते हुए भी यही उच्च भाव व्यक्त किए थे। आपने कहा था
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