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महावीर की जीवन-रेखाएँ: ४७
पदार्थों के लिए रण-भूमि में लाखों मनुष्यों का संहार कर सकता है ? कभी नहीं। मेरी भक्ति की ओर नहीं, अपने दुष्कर्मों की ओर देखो। मानव का अपना स्वयं का सदाचार ही मनुष्य को नरक से बचा सकता है, और कोई नहीं ! भक्ति में और भक्ति के ढोंग में अन्तर है राजन् !"
० इस पर अजातशत्रु भगवान् का विरोधी बन गया। विरोधी बने तो बने, भगवान् को इससे क्या? वह भक्तों की दिलजोई करने को कभी अत्याचार का-पतित जीवन का समर्थन नहीं कर सकते। .
० अपने श्रमण-शिष्यों पर भी भगवान का बहुत कड़ा अनुशासन था। गलती करने वाला शिष्य, चाहे कितना ही बड़ा हो, संघ का अधिकारी हो, वह उसे अनुशासित करने से न चकते थे। इन्द्रभूति गौतम भगवान् के एक प्रमुख गणधर थे, एक प्रकार से वे ही श्रमणसंघ के अधिनायक एवं सर्वेसर्वा कर्ता-धर्ता थे। एक बार की बात है कि गौतम आनन्दश्रावक के साथ वार्तालाप करते समय भ्रान्तिमूलक सिद्धान्त की स्थापना कर आए, इसके लिए भगवान् ने आपको तत्काल ही आनन्द से क्षमा - याचना करने भेजा।
. चौदह हजार श्रमणों के संघ का अधिपति एक
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