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________________ ४६ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश के प्रजातंत्र पर अत्याचार पूर्ण आक्रमण करने के कारण उसका खोखलापन प्रकट हो चुका था, जनता की आँखों में उसका व्यक्तित्व गिर चुका था। ० अपने गिरते व्यक्तित्व को पुनः जनता में प्रति. ष्ठित करने के लिए उसने एक बार भगवान् से विचार-चर्चा की। भगवान् मुझे श्रेष्ठ, धर्मात्मा, स्वर्ग या मोक्ष का अधिकारी प्रमाणित कर दें। इस हेतु से उसने सहस्राधिक स्त्री - पुरुषों की सभा के बीच भगवान से पूछा "भगवन्, मृत्यु तो आएगी ही...... ! "अवश्य आएगी !" 'हां तो, मृत्यु के अनन्तर भगवन् ! मैं कहाँ जन्म लगा ?" "नरक में।" "भगवन, नरक ?" "हां, नरक।" "आपका भक्त और नरक !" "क्या कहा, मेरा भक्त ?" "हाँ, आपका भक्त ।" "झठ बोलते हो नरेश ! मेरा भक्त होकर क्या निरीह प्रजा का शोषण कर सकता है, वासनाओं का गुलाम बन सकता है, हार और हाथी जैसे नगण्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001422
Book TitleMahavira Siddhanta aur Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Discourse, N000, & N005
File Size6 MB
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