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________________ महावीर की जीवन-रेखाएं : ४५ क्या आशय था, यह इस संवाद पर से अच्छी तरह समझा जा सकता है। भगवान् जन - सेवा में ही अपनी सेवा मानते थे। जहाँ तक हमें पता है, संसार के अन्य अनेक प्राचीन महापुरूषों में भगवान् महावीर ही सर्वप्रथम महापुरुष हैं, जिनका जन-सेवा के सन्दर्भ में यह सबसे पहला महान् ज्योतिर्मय वचन है। यथार्थ भाषी: ० भगवान महावीर ने अपने जीवन में कभी किसी व्यक्ति के दबाव में आ कर सत्य का अपलाप नहीं किया। चाहे कोई महान सम्राट रहा हो, या और कोई, उन्होंने निःसंकोच यथार्थ सत्य का प्रतिपादन किया। एक सच्चे महापुरुष में जो स्पष्टवादिता होनी चाहिए, वह उनमें सौ-में-सौ नंबर थी। ० . मगध-सम्राट् अजातशत्रु भगवान् का बड़ा ही कट्टर भक्त था। उसने प्रतिदिन प्रातःकाल प्रभु के सुख - समाचार पाने की व्यवस्था की हुई थी। बिना भगवान् के दर्शन पाए या समाचार पाए, कहते हैं, वह और तो क्या जल की एक बूंद भी मुंह में न डालता था। परन्तु, उसका आन्तरिक जीवन गिरा हुआ था। ० भक्ति की उजली चादर में वह अपने दुर्भाव के काले दाग जनता से छुपाए हुए था। परन्तु, वैशाली .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001422
Book TitleMahavira Siddhanta aur Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Discourse, N000, & N005
File Size6 MB
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