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५२ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
थी, स्वातिनक्षत्र का योग चल रहा था । भगवान् एक प्रकार से विदा लेते हुए सोलह पहर से निरन्तर, जनता को अपनी अन्तिम थाती प्रदान करने के रूप में, धर्म-प्रवचन कर रहे थे । नौ मल्लि और नौ लिच्छविइस प्रकार अठारह गण-नरेश सेवा में पौषध किये हुए थे, भगवान स्वयं भी दो दिन के उपवासी थे, शुक्लध्यान के द्वारा अवशिष्ट रहे वेदनीय, आयुष्य, नाम गोत्र- इन चार अघाति कर्मों के आवरणों को भी हटा कर सदा के लिए अजर-अमर हो गए-जैन परिभाषा में निर्वाण पा कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गए। ० वह ज्ञान - सूर्य हम से अलग होकर मुक्ति - लोक में चला गया है। आज हम उसके साक्षात् दर्शन नहीं कर सकते। परन्तु, उसकी धर्म - प्रवचन के रूप में प्रसारित ज्ञानकिरणें आज भी हमारे सामने प्रकाशमान हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम उन ज्ञानकिरणों के उज्ज्वल प्रकाश में सत्य का अनुसन्धान करें और जीवन सफल बनाएँ!
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