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४२ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
भाई के समान एक साथ बैठे देखते हैं। विश्व-बन्धुता का कितना महान ऊँचा आदर्श है ! काश, आज भी हम इसे ठीक तरह समझ पाएँ। नारी - जीवन का सम्मान : ० अभिमानी पुरुष - वर्ग की ठोकरों में चिरकाल से. भूलु ठित रहने वाली नारी - जाति ने भी भगवान को पाकर खड़े होने की कोशिश की। भगवान ने, सामाजिक एवं धार्मिक अधिकारों से चिरवंचित मातृ - जाति को आह्वान किया और उसके लिए स्वतन्त्रता का द्वार खोल दिया। • भगवान् कहा करते थे कि धर्म का संबंध आत्मा से है। स्त्री और पुरुष के लिंग - भेद के कारण उसके असली मूल्य में कोई अन्तर नहीं पड़ता। जिस प्रकार पुरुष धर्माराधना में स्वतन्त्र है, उसी प्रकार स्त्री भी स्वतन्त्र है। कर्म - बन्धनों को काट कर मोक्ष पाने के दोनों ही समानरूप से अधिकारी हैं। ० भगवान् की छत्र-छाया में नारी-समाज ने आराम के साथ स्वतन्त्रता की सांस ली। स्त्री-जाति का एक स्वतन्त्र भिक्षुणी-संघ भी स्थापित हुआ था, जिसमें ३६ हजार भिक्षणियाँ धर्माराधन करती थी, विशेष उल्लेखनीय बात यह थी कि भिक्षणी-संघ का नेतृत्व भी भिक्षुणी को ही सौंपा हुआ था, जिनका शुभ नाम
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