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४१ महावीर की जीवन-रेखाएं :
• आर्द्र कुमार जैसे आर्येतर जाति के युवकों को उन्होंने अपने मुनि - संघ में दीक्षा दी। हरिकेश जैसे चाण्डाल - जातीय मुमुक्षुओं को अपने भिक्षु - संघ में वही स्थान दिया, जो ब्राह्मण श्रेष्ठ इन्द्रभति गौतम को मिला हुआ था। इतना ही नहीं, अपने धर्म - प्रवचनों में यथावसर इन निम्न जातीय साधकों की मुक्तकठ से प्रशंमा भी करते थे। चाण्डाल मुनि हरिकेश के लिए महावीर ने कहा था- "प्रत्यक्ष में जो कुछ भी विशेषता है, वह तप - त्याग आदि सद्गुणों की है। ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि उच्च वर्णों या जातियों की नहीं। श्वपाकपुत्र चाण्डाल हरिकेशमुनि को देखोअपने सदाचार के बल पर कितनी ऊँची स्थिति को पहुँचा है, जिसके चरणों में देव भी वन्दन करते हैं।" ० भगवान की प्रवचन सभा में, जिसे जैन-परिभाषा में समवसरण कहते हैं, जातिवाद - सम्बन्धी नीचता या उच्चता के लिए कोई स्थान न था। किसी भी जाति का हो, कोई भी हो, अपनी इच्छानुसार आगेपीछे कहीं भी बैठ सकता था। उसे इधर - उधर हटा देने का, दूर कर देने का, स्पष्टतः निषेध था। यही कारण है कि हम भगवान् के समवसरण में सम्राट श्रेणिक, याज्ञिक सोमिल और हरिकेश जैसे चाण्डाल आदि सभी को बिना किसी भेद-भाव के एक सहोदर
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