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४० : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
व्यक्ति भी नीच है, और अच्छा आचरण करने वाला सदाचारी नीच कुलीन भी ऊँच है। जन्म से श्रेष्ठ कही जाने वाली जातियों का कोई मूल्य नहीं। जो मूल्य है, वह शुद्ध आचार और शुद्ध विचार का है। मनुष्य अपने भाग्य का स्रष्टा स्वयं है। वह इधर, नीचे की ओर गिरे तो मनुष्य से राक्षस हो सकता है
और उधर, ऊपर की ओर चढ़े तो देव, देवेन्द्र, यहाँ तक कि परमात्मा, परमेश्वर भी हो सकता है। मुक्ति का द्वार मनुष्य मात्र के लिए खुला है-ऊँच के लिए भी, नीच के लिए भी।
"किसी भी मनुष्य को जात पात के आधार पर घणा की दष्टि से न देखा जाए। मनुष्य किसी भी जाति का हो, किसी भी कुल का हो, किसी भी देश या प्रदेश का हो, वह मानवमात्र का जाति-बन्धु है। उसे सब तरह से सुख - सुविधा पहुंचाना, उसका यथोचित आदर-सम्मान करना, प्रत्येक मनुष्य का मनुष्यता के नाम पर सर्व-प्रधान कर्तव्य है।"
__० भगवान् उपदेश दे कर ही रह गये हों, यह बात नहीं। उन्होंने जो कुछ कहा, उसे आचारण में ला कर समाज में रचनात्मक क्रान्ति की सक्रिय भावना भी पैदा की।
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