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महावीर की जीवन-रेखाएँ : ३६
० धर्म प्रचार की दिशा में भगवान् की यह पहली सफलता थी, जिसने सहसा जनता की मोहनिद्रा भंग कर दी। अब तो दूर-दूर तक भगवान् की ख्याति फैल गई। बड़े-बड़े विचारक धर्मगुरु, जननायक और साधारण जन भगवान् के पास आते, समाधान पाते और उनके संघ में सम्मिलित हो जाते थे।
जातिवाद कावंस!
० भगवान महावीर ने अपने धर्म-प्रवचनों में जातिवाद की खब खबर ली। अखण्ड मानव-समाज को छिन्न-भिन्न कर देने वाली जात-पांत की जन्मजात व्यवस्था के प्रति आष प्रारम्भ से ही विरोध की दष्टि रखते थे।
आपका कहना था-"कोई भी मनुष्य जन्म से उच्च या नीच बन कर नहीं आता। जाति-भेद का कोई ऐसा स्वतन्त्र चिह्न नहीं है, जो मनुष्य के शरीर पर जन्म से ही लगा हुआ आता हो और उस पर से पृथक-पृथक् जात-पांत का भान होता हो ।
० ऊँच-नीच की व्यवस्था का यथार्थ सिद्धान्त मनुष्य के अपने भले - बुरे कर्मों पर निर्भर करता है। बुरा आचारण करने वाला दुराचारी उच्च कुलीन
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