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________________ महावीर की जीवन-रेखाएँ : ३७ मन, वचन और कर्म की शुभ प्रवृत्तिरूप घृत उडे लो। अनन्तर तपरूपी अग्नि के द्वारा दुष्कर्मों को इन्धन के रूप में जला कर शान्तिरूप प्रशस्त होम करो।" ० भगवान की इस अहिंसाधर्म की देशना का जनता पर प्रभावशाली असर हुआ। यज्ञ - प्रिय जनता के शुष्क हृदयों में करुणा का स्रोत फट निकला। ० यज्ञों का कैसे ध्वंस हआ ? महावीर के तीर्थकर जीवन की सबसे पहलो महत्त्वपूर्ण घटना ने ही तत्कालीन भारतीय विचार - प्रवाह को नयी दिशा दी, नया मोड़ दिया। ० मध्य पावानगरी में उन दिनों एक विराट - यज्ञ का आयोजन था। हजारों की संख्या में देश के महान विद्वान् ब्राह्मण वहाँ एकत्र थे। यज्ञ - मंत्रों के तुमुल घोष से पावा गज रही थी। यह यज्ञ उस समय के इन्द्रभूति गौतम आदि सुप्रसिद्ध ग्यारह विद्वानों के तत्त्वाधान में हो रहा था। इस यज्ञ की चारों ओर बड़ी धूम थी। ० भगवान महावीर कैवल्य पाते ही "ऋजुबालका तट" पर से वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन सीधे पहुंचे महासेन वन में । वहाँ समवसरण लगा और पशु - यज्ञ के विरोध में धड़ल्ले से ज्ञानयज्ञ एवं तपोयज्ञ का प्रचार किया जाने लगा। जनता उमड़ पड़ी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001422
Book TitleMahavira Siddhanta aur Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Discourse, N000, & N005
File Size6 MB
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