________________
३६ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
धर्म का उच्च, उच्चतर और उच्चतम जय - घोष भारत में चहुँ ओर गूजने लगा। यज्ञों का विरोध:
० भगवान ने सबसे पहला प्रहार उस समय के हिंसामय यज्ञों पर किया। हजारों मूक पशुओं का धर्म के पवित्र नाम पर रक्त वहता देख उनकी दया आत्मा सिहर उठी थी। भगवान ने पशु · वध-मूलक यज्ञों का मूलोच्छेद करने के लिए कमर कस ली। अपने धर्म - प्रवचनों में वे खुल्लम-खुल्ला यज्ञों का खडन करने लगे। आपका कहना था__ "धर्म का सम्बन्ध आत्मा की पवित्रता से है। मूक पशुओं का रक्त बहाने में धर्म कहाँ ? यह तो आमूलचल भयंकर पाप है। जब तुम किसी मृत-जीव को जोवन नहीं दे सकते, तो उसे मारने का तुम्हें क्या अधिकार है ? पैर में लगा जरा - सा काँटा जब तुम्हें बेचैन कर देता है, तो तलवार से जिनके शरीर के खण्ड - खण्ड कर देते हो, उन्हें कितना दुःख होता होगा ?
० यज्ञ करना बुरा नहीं है। वह अवश्य होना चाहिए। परन्तु ध्यान रक्खो कि वह विषय - विकारों की वलि से हो, पशुओं की बलि से नहीं। अहिंसक यज्ञ के लिए आत्मा का अग्निकुण्ड बनाओ। उसमें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org