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३४ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
आवरण हटा और महावीर केवलज्ञान और केवल. दर्शन के धर्ता बने । नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा बने । जैन परिभाषा के अनुसार अब आप अर्हन्त और जिन हो गए, तीर्थकर हो गए। __० वैशाख शुक्ला दशमी का कैवल्य-प्राप्ति का यह शुभ दिन जैन इतिहास में सदा के लिए अजरअमर रहेगा। आज के दिन ही भगवान की सबसे पहली देशना (प्रवचन) दिव्यध्वनि के रूप में मुखरित हुई, जन-जीवन के मंगल-कल्याण के लिए। सत्य का जयघोष
० महापुरुषों के जीवन की विशेषता एकमात्र स्वयं सत्य की प्राप्ति में ही नहीं है, अपितु उनकी सबसे बड़ी विशेषता तो प्राप्त सत्य को अन्धकारा. च्छन्न मानव-संसार के सम्मुख रखने में है। सूर्य का महत्त्व अपने लिए अन्धकार का नाश करने में ही नहीं है, प्रत्युत चराचर विश्व को प्रकाश देने में है।
० भगवान महावीर कैवल्य लाभ कर चुके थे, अपनी दष्टि से कृतकृत्य हो चुके थे। वे चाहते तो अब आराम के साथ एकान्त जीवन बिता सकते थे, परन्तु वे तो सच्चे महापुरुष थे। वे तब तक तो जनजन-सम्पर्क से दूर रहे, जब तक वे स्वयं आत्म-प्रकास
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