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तीर्थकर जीवन
अहन्त के पद पर :
० भगवान महावीर साढ़े बारह वर्ष तक यत्र-तत्र करुणा की अमृत-वर्षा करते हुए आत्म-साधना में लीन रहे। प्रायः निर्जन वनों में रहना, हिंस्र पशुओं का रौद्र आतंक सहना, भ्रममुग्ध मनुष्यों और देवों के उपद्रवों को प्रसन्न वित्त से सहना, छह-छह महीने तक अन्न का एक कण और जल की एक बूंद भी मुंह में नहीं डालना । ओफ ! कितना उन तपस्वी जीवन था वह !
० हाँ, तो भगवान् उग्र तपःसाधना करते हुए बिहार प्रदेश के 'जंभिय' गाँव के पास वहने वाली 'ऋजूवालुका' नदी के तट पर पहुंचे। वहाँ साल का एक सघन वक्ष था। उसके नीचे गोदूह-आसन से वे ध्यानस्थ हो गए। दो दिन से उनका निर्जल निराहार उपवास था। दूसरे दिन का संध्याकाल था। भगवान् की आत्मलीनता चरम सीमा पर पहुंच रही थी। आत्मा पर से ज्ञानावरण आदि घनघाति कर्मों का
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