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३२ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
दास शूद्र से भी अधिक निम्न स्तर का अधम व्यक्ति है समाज का। उससे कोई भी धर्मगुरु आहार लेना पसन्द नहीं करता। दास के हाथ का भोजन भला कोई कैसे ले सकता है ? परन्तु महावीर ले लेते हैं। च कि महावीर की दष्टि में मानव-मानव सब एक है । मानव को दास बनाना, यह मानवता का अपमान है। महावीर की करुणा दास-प्रथा के विरोध में उदन हो उठती है। महावीर के आहार लेने पर चन्दना दासता के बन्धन से मुक्त हो जाती है। महावीर ने अन्यत्र भी एक दासी के हाथ से भोजन लिया है । अस्तु, आगे चलकर इसी सन्दर्भ में तीर्थंकर महावीर घोषणा करते हैं-"कोई भी श्रावक दासों के क्रयविक्रय का व्यापार नहीं कर सकता।" दासप्रथा के विरोध में महावीर ने इस प्रकार वन्धन-मुक्ति के एक सात्विक आन्दोलन का सूत्रपात किया।
भगवान महावीर के संघ में अनेक दासों तथा दासियों ने श्रमण-दीक्षा ली। अनेक दास और दासी उनके उच्चतम श्रावक और श्राविका बने। और तो क्या, हरिकेश-बल जैसे घणापात्र चाण्डाल भी मुनिधर्म में दीक्षित हए हैं। महावीर ने धर्म के, जीवन विकास के और स्वतन्त्रता के द्वार सभी के लिए खोल दिए। हे करुणा के सागर, वन्धन-मुक्ति के अमर देवता, तेरे चरणों में शत-शत प्रणाम !
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