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महावीर की जीवन-रेखाएँ :३१
रूप में कौशाम्बी के दास-बाजार में पशुओं की तरह बेचा गया। अंगनरेश की सुपुत्री चन्दना भी बाजार में बिक रही थी, वेश्याएँ अपने धंधे के लिए उस अप्सरा-सी रूपसी कन्या को खरीद रही थीं। सौभाग्य से श्रेष्ठी धनावाह ने उसके शील की रक्षा हेतु उसे खरीद लिया। राजकीय विधान के अनुसार वह सेठ की दासी थी, परन्तु सेठ के यहाँ दासी का काम करती हुई भी वह एक प्रिय पुत्री की तरह जीवनयापन कर रही थी । सेठ को पत्नी को आशंका हुई कि कहीं इस सुन्दर दासी को सेठ अपनी रखैल न बना ले। इस प्रकार की शंका उस युग की किसी भी गहिणी को सहज ही हो सकती थी, च कि तत्कालीन समाज का वातावरण ही कुछ ऐसा था।
एक दिन सेठ की अनुपस्थिति में सेठानी ने उसे हथकड़ी बेड़ी से बाँध कर कैद में डाल दिया। तीन दिन तक न अन्न का एक दाना, न पानी की एक बून्द । चौथे दिन उसे पशुओं के लिए तैयार किए गए कुलथी (उड़द) के बाकले खाने को मिले। श्रमण भगवान् महावीर उन दिनों कौशाम्बो में थे । पाँच महीने पच्चीस दिन हो गए थे, उन्हें निराहार रहते। किसी भी अभिजात धनी कुल से उन्होंने आहार नहीं लिया था । महावीर ने उड़द के वाकलों का आहार लिया था, दासी चन्दना के हाथ से ।
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