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महावीर की जीवन-रेखाएँ : २६
"वह कौन - सा है ?"
"वह यह कि तुमने अज्ञानता के कारण मुझे जो कष्ट पहुँच, ए हैं, इसका भविष्य में क्या फल मिलेगा ? इसका तुझे कुछ पता नहीं, किन्तु मुझे पता है। जब मैं तेरे उस अन्धकारपूर्ण भविष्य पर नजर डालता हूँ, तो कांप उठता है। एक अबोध जीव मेरे निमित्त से बांधे गए दुष्कर्मों के फलस्वरूप कितनी भीषण यातना भोगेगा, कितना कष्ट पाएगा? आह...कितना दारुण दुःख है ! भद्र जैसे भी हो सके, शान्ति-लाभ कर। ० भगवान के हृदय में करुणा का समुद्र हिलोरें लेने लगता है। आँखों से सद्भावना के करुणाश्रु फिर बहने लगते हैं।
संगम करुणामूर्ति के इस अभिनव करुणाप्लावित हृदय को देख कर पानी-पानी हो जाता है।
कितना दिव्य और लोकोत्तर जीवन, कितना आदर्श विश्व -प्रेम । भगवान की अमृत-रस-भरी इष्टि में शत्र और मित्र का द्वैत कभी रहा ही नहीं । वहाँ मित्र भी मित्र था और शत्रु भी मित्र !
श्रमण भगवान महावीर करुणा के देवता हैं। वे व्यक्ति या समाज पर होने वाले किसी भी प्रकार के अत्याचार एवं उत्पीड़न को कभी दरगुजर नहीं कर
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