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महावीर की जीवन-रेखाएं : २७
० देव-सभा में सभी ने तुमुल जयघोष के साथ अनुमोदन किया । परन्तु संगमदेव के हृदय में यह बात न पैठ सकी। वह एक वैभवशाली प्रतिष्ठित देव था और उसे अपने दिव्य दैवी-बल पर घमंड भी बहुत अधिक था। वह भगवान् के पास उन्हें पथ-म्रष्ट करने पहुंचा।
० संगम ने उपसर्गों का तूफान खड़ा कर दिया। जितना भी वह कष्ट दे सकता था, दिया। शरीर का रोम-रोम पीड़ा से बींध डाला। फिर भी पीड़ा से विचलित न हए, तो प्रलोभनों का जाल बिछाया गया। आकाश-लोक से एक-से-एक सुन्दर अप्सराएँ उतरी। नृत्य हुआ, गान हुआ, हावभाव प्रदर्शित हुए, सब-कुछ हुआ, परन्तु भगवान् का हृदयमेरु, तनिक भी प्रकम्पित नहीं हुआ।
० इने-गिने दिन नहीं, पूरे छह महीने तक दुःखसुख और सुख-दुःख का तांता बंधा ही रहा । अन्त में संगम का धैर्य ध्वस्त हो गया। वह हार गया। परन्तु, हारा हुआ भी अपनी बात जरा ऊपर रखने . को बोला
"भगवन् ! आप जानते हैं, मैं संगमदेव हूं। यह जो कुछ भी हो रहा था, आपकी परीक्षा के लिए हो रहा था। और, कोई हेतु नहीं था मेरा। पर अब विचार
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