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महावीर की जीवन - रेखाएँ : २३
"झूठी फिलासफी बघारने में क्या रखा है ? वहाँ जाना है, तो जीवन की आशा न रखिए, मृत्यु को आगे रख कर जाइए। आप जैसे सैकड़ों साहसी वहाँ गए तो हैं, पर लोटा कोई नहीं ।"
" बहुत ठीक ! यदि मेरे जीवनोत्सर्ग से सर्प को कुछ भी परिबोध हो सका, वह शान्त हो सका, तो यह लाभ क्या कुछ कम है ? मैं जा रहा हूँ, आप मेरी चिन्ता न करें ।'
गोपाल रोकते ही रहे, परन्तु भगवान् आगे बढ़ गए । चण्डकौशिक के निवास स्थान पर पहुंच कर भगवान् कायोत्सर्गमुद्रा में ध्यान लगाकर खड़े हो गए । कौशिक फुफकार मारता हुआ वांबी से बाहर निकला । भगवान् पर इसका जरा भी असर न हुआ । कौशिक क्षुब्ध हो उठा, दूने वेग से उसने फुफकार मारी, फिर भी कुछ न हुआ । अब तो वह अपनी असमर्थता पर खोज उठा। भरपूर आवेश में आ कर चरणों में दंश भी मारा। फिर भी कुछ असर नहीं - कौशिक स्तब्ध हो गया, यह क्या ?
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'नागराज ! किस द्विविधा में हो ? जैसे चाहो, काट सकते हो, जी भर काट सकते हो। मैं तुम्हारे सामने हूँ, जाता नहीं हूँ ।"
कौशिक टकटकी लगाए देखता रहा !
" कौशिक, दूसरे पामर जीवों को सताने से क्या लाभ ? मैं प्रसन्नता के साथ तुम्हें अपना समस्त शरीर अर्पण
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