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महावीर की जीवन-रेखाएँ : २१ ० भगवान महावीर ऐसे ही महापुरुष थे । वे केवल मानव कल्याण के लिए ही नहीं, विश्व-कल्याण के लिए, प्राणिमात्र के कल्याण के लिए निकले थे। फलतः अपने जीवन - मरण की कोई परवाह न कर, वे हिंस्र-से-हिंस्र जन्तुओं के पास भी पहुंचते और उन्हें सद्भावना का पाठ पढ़ाते थे। यह महाप्रभाव उनको साधना काल में ही मिल चुका था, जिसके द्वारा उन्होंने नागराज चण्डकौशिक का भी उद्धार कर दिया था। घटना इस प्रकार है
भगवान महावीर एक वार श्वेताम्बिका नगरी की ओर जा रहे थे। इस सुरम्य प्रदेश में इधर-उधर चहुं ओर प्रकृति का वैभव बिखरा हुआ था। भगवान के तपस्तेजोमय देदोप्यमान देह की आभा वन - प्रदेश पर छिटक रही थी। भगवान् आत्म-भाव की मस्ती में झमते चले जा रहे थे। ० मार्ग में कुछ गोपाल चरवाहे मिले। उन्होंने प्रभु से निवेदन किया
"मुनिवर, इधर न जाइए। इधर कुछ दूर आगे निर्जन प्रदेश में महाभयंकर 'चण्डकौशिक' सर्प रहता है। वह दष्टि विष है। देखने भर से दूर - दूर तक के वायुमण्डल को विषाक्त बना देता है।" ० भगवान् मौन रहे। आगे बढ़ने लगे।
"भिक्षु, हम तुम पर दया ला कर ही यह सब कह रहे
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