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________________ २० : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश है। दया करो, दीनबन्धु ! दया करो ! दीन ब्राह्मण पर दया करो !" ० ब्राह्मण प्रार्थना करता - करता गद्गद् हो जाता है। आँखों से अश्रु - धारा बह निकलती है। अन्त में फिर वह अबोध बालक की तरह भगवत् - चरणों से लिपट जाता है। ० भगवान् ब्राह्मण की दयनीय दशा पर दया हो जाते हैं । देवदूष्य चीवर ब्राह्मण को दे देते हैं। भगवान महावीर के ज्येष्ठ भ्राता राजा नन्दीवर्द्धन को जब इस घटना का पता लगता है, तो वह भगवान् के प्रेम और ब्राह्मण की दीनता को ध्यान में रख कर यथेष्ट धनदान के द्वारा वह चीवर उससे ले लेता है। ब्राह्मण जीवनभर के लिए सुखी हो जाता है। 'धन्यो दयासागर: !' चण्डकौशिक को प्रतिबोध ० महापुरुषों की करुणा - वष्टि मानब - समाज तक ही सीमित नहीं रहती, वह पशु-जगत् पर भी होती है और उसका कल्याण करती है । साधारण मनुष्य खूखार जानवरों को देख कर भयभीत हो जाते हैं, उन्हें मारने दौड़ते हैं या भाग उठते हैं। परन्तु महापुरुष उनमें भी आत्मभाव के दर्शन करते हैं, और उनसे वैसे ही मिलते हैं, जैसे अपने किसी स्वजन से मिलते हों। परन्तु, शर्त यह है कि सच्ची महापुरुषता होनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001422
Book TitleMahavira Siddhanta aur Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Discourse, N000, & N005
File Size6 MB
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