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________________ १४ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश ० महावीर का साधना-काल बड़ा ही विलक्षण माना जाता है । यह वह काल है, जिसमें महावीर ने अपने शरीर तक की कोई परवाह न की और निरन्तर उग्र आत्म-साधना में ही संलग्न रहे। क्या गर्मी, क्या सर्दी और क्या वर्षा, अधिकतर निर्जन वनों एवं पर्वतीय गुफाओं में ही वे ध्यानसाधना करते रहते थे । नगरों में भिक्षा आदि के लिए कभीकभी ही आना होता था। ० महावीर की यह साधना १२ वर्ष तक चलती रही। इस बीच में आपको बड़े ही भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ा । आपको प्रायः हर जगह अपमानित होना पड़ता था। ग्रामीण लोग बड़ी निर्दयता के साथ पेश आते थे। कभी-कभी तो प्राणान्तक पीड़ा के प्रसंग भी देखने को मिलते थे। ताडन, तर्जन और उत्पीड़न तो रोजमर्रा की बात थी। लाटदेश में तो आपको शिकारी कुत्तों से भी नुचवा डाला था। परन्तु आप सर्वया शान्त एवं मौन रहे । आपके हृदय में विरोधी-से-विरोधी के प्रति भो करुणा का अमृतमय झरना अबाध गति से वहता रहता था। द्वेष और रोष क्या चीज होते हैं, आपका अन्तर - हृदय इस ओर से सर्वथ अस्पृष्ट रहा । भगवान् की तितिक्षा एक प्रकार से चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी। वह सहज थी, आरोपित नहीं । अपने बल, अपना उद्वार ० भगवान महावीर का स्वावलम्न, एक आदर्श था। साधना-काल में आप पर, न जाने कितने विपत्ति के पहाड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001422
Book TitleMahavira Siddhanta aur Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Discourse, N000, & N005
File Size6 MB
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