________________
साधक जीवन
साधना के पथ पर
० इतिहास के पृष्ठों पर, हम हजारों की संख्या में जननेताओं को असफल हुआ पाते हैं । इसका कारण यह है कि वे सर्वप्रथम अपने जीवन का सुधार नहीं कर पाए थे। हृदय में कुछ करने की एक हलकी-सी तरंग के उठते ही विश्व का सुधार करने को मैदान में कद पड़े। परन्तु ज्यों ही विघ्न-बाधाओं का भयंकर तफान सामने आया कि हताश होकर वापस लौट पड़े। जिस सिद्धान्त के प्रचारार्थ वे शोर मचाते थे, जब जनता उनमें वह सचाई न पा सकी तो, उसने तिस्कार किया और विश्वोद्धार का स्वप्न देखने वाले नेता अन्धकार के सागर में डब कर विलीन हो गए। ०. परन्तु भगवान महावीर ने दीक्षा लेते ही धर्म-प्रचार की शीघ्रता न की। पहले उन्होंने अपने आपको साध लेना चाहा । फलतः अन्तस्तल में उन्होंने यह दढ़-प्रतिज्ञा ग्रहण कर ली कि 'जब तक कैवल्य (पूर्ण बोध ) प्राप्त न होगा, तब तक सामूहिक जन-सम्पर्क से अलग रहूंगा-एकान्त में वीतराग - भाव की ही साधना करता रहूंगा।"
Jain Education International
For Private & Personal .Use Only
www.jainelibrary.org