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१२ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
न्याय, नीति और शान्ति की रक्षा करता हुआ भी अधिक स्थायी व्यवस्था कायम नहीं कर सकता, जबकि धर्म-शासन, आपसी प्रेम और सद्भाव पर कायम होता है, फलत: वह सत्पथ-प्रदर्शन के द्वारा मूल से समाज का हृदय परिवर्तन करता है और सब ओर से पापाचार को हटा कर स्थायी न्याय, नीति तथा शान्ति की स्थापना करता है ।
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प्रभु महावीर भी अन्ततोगत्वा इसी निर्णय पर पहुँचे । आपने देखा की भारत का यह दुःसाध्य रोग साधारण राजनैतिक हलचलों से दूर होने वाला नहीं है । इसके लिए तो सारा जीवन ही उत्सर्ग करना पड़ेगा, क्षुद्र परिवार का मोह छोड़ कर विश्व - परिवार का आदर्श अपनाना होगा | राजकीय वेशभूषा से सुसज्जित होकर साधारण जनता में नहीं घुला - मिला जा सकता। उस तक पहुंचने के लिए तो ऐच्छिक लघुत्व स्वीकार करना होगा । अर्थात् शुद्ध भिक्षुत्व ही 'स्व' और 'पर' के विकारों एवं दोषों के परिमार्जन की दिव्य प्रक्रिया है ।
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भारत के इतिहास में मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी का दिन सदैव संस्मरणीय रहेगा। इस दिन राजकुमार महावीर स्व पर कल्याण के लिए, पीड़ित संसार को सुख-शान्ति का अमर सन्देश सुनाने के लिए, अपने अन्दर में सोए परमात्मतत्त्व (ईश्वरत्व) को जगाने के लिए, राज्य- वैभव को ठुकरा कर, भोग विलास को तिलांजलि दे कर, अपने पास की करोड़ों की संपत्ति दोन-हीन जनता के उद्धार में अर्पित कर अकिंचन भिक्षु बने थे ।
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