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१० : महावीर सिद्धान्त और उपदेश
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महावीर विवाह बन्धन में बंध गए । धर्म-पत्नी भी सुन्दरी थी, साथ ही सुशीला भी । राज्य वैभव चरणों में हर समय निछावर था । सांसारिक सुखोपभोगों की कोई कभी न थी । परन्तु, महावीर का वैरागी हृदय इन दुनियावी उलझनों में नहीं उलझा । वह रह-रह कर मोह बन्धनों को तोड़ने के लिए उठ खड़ा होता था, उसके समक्ष एक महान् भविष्य का उज्ज्वल चित्र अंकित जो हो रहा था ।
• इसका यह अभिप्राय नहीं कि महावीर एक असफल गृहस्थ थे । उन्होंने गृहस्थाश्रम की गाड़ी को भी बड़ी सफलता के साथ चलाया था । तत्कालीन राजनीति पर भी आपने अपने चतुर व्यक्तित्व की छाप खूब अच्छी तरह डाली थी । परिवार का स्नेह भी पूर्णत्या संपादन किया था । दम्पती का आदर्श प्रेम भी एक आकर्षण की चीज थी। संतति के रूप में परिवार को राजकुमारी प्रियदर्शना के नाम से एक सुपुत्री भी प्राप्त थी। परन्तु यह सब कार्य गृहस्थाश्रम के आदर्श के लिए ही था । विषयासक्ति जैसी चीज महावीर के अन्तस्तल में कभी बद्धमूल न रही ।
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राजकुमार महावीर की अवस्था २८ वर्ष के करीब हो चुकी थी। इसी बीच माता-पिता का देहान्त हो गया । राजसिंहासन के लिए - महावीर के समस्त परिवार और प्रजा की ओर से आग्रह किया गया, परन्तु उन्होंने स्पष्टरूप से इन्कार कर दिया । आखिर, महावोर के बड़े भैया नन्दीवर्द्धन को राजसिंहासन पर बिठा दिया गया । अन्ततः
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