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८ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
पुराने कथागुरु कहते हैं कि उक्त बाल-क्रीड़ा के समय ताड़-जैसा लम्बा, कज्जलगिरि-सा काला-कलूटा, दानवाकार एक महाभयंकर आदमी आ धमका। महावीर को अपने कंधों पर उठाकर उछलने - कूदने व दौड़ने लगा वह ।
दूसरे बालकों को तो जैसे सांप सूघ गया । कुछ सहसा बेहोश हो गए, धरती पर निष्प्राण मुर्दो की तरह धम् से गिर पड़े। और, कुछ चीखने-चिल्लाने लगे, जोर-जोर से रोने लगे । पर, सब बेबस, लाचार ! करें भी, तो क्या करें !
दैत्य कुमार महावीर को कन्धों पर उठाये जा रहा है, यम - दूत की तरह। और, महावीर हैं कि निर्भय और निर्द्वन्द्व । आस-पास भी कहीं कोई भय की छाया तक नहीं, किसी भी तरह का कोई डर नहीं। ऊगते किरण की नन्हींसी-बालकिरण भी कितनी ज्योतिर्मय होती है, देखें कोई उसे प्रभात की स्वर्णिम वेला में !
महावीर ने कुछ देर तो देखा-यह कौन है, क्या करता है ? और जब देखा कि गलत आदमी है, इरादा अच्छा नहीं है इसका, तो कुमार ने कस कर उसके नग्न कपाल पर मुष्टिप्रहार किया। मुष्टि क्या, वज्र की ही एक चोट थी! होश भूल गया वह। नख से शिखा तक तिलमिला उठा सारा अंग । शीघ्र ही चरणों में गिरा, क्षमा मांगने लगा।
पुराने कथागुरु इसे दैवी घटना का रूप देते हैं। कुछ भी हो महावीर बाल्य - काल से ही वीर थे, महावीर थे। भय की तो कोई एक रेखा भी उन्हें स्पर्श न कर सकी थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org