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महावीर की जीवन-रेखाएँ : ७
महावीर तो महाबीर ! सिंह-शावक कितना ही छोटा क्यों न हो, क्षुद्र काय हो, आखिर तो वह सिंह ही होता है न? क्षितिज पर अभी - अभी उदय हुआ, बाल रवि भी क्या कभी चारों ओर परिव्याप्त सघन अन्धकार से डरा है ?
महावीर दौड़कर सर्प के पास आए । देखा और मुस्कराए "नागराज. तुम्हारा यहाँ खेल के मैदान में क्या काम ? डराने आए हो हमें ! जाओ, जाओ, अपना काम करो" राज कुमार महावीर ने हंसते - हंसते यह कहा और एक साधारण-सी सुकोमल नागवल्ली की तरह उठा कर महाकाय नाग को खेल के स्थान से बहुत दर झाड़ियों में छोड़ आए ।
वीरता और साहसिकता सहज होती है, खरीदी नहीं जाती, उधार नहीं ली जाती। ० एक और घटना है बचपन की। नगर से काफी दूर वन प्रदेश में कुमार महावीर अपने बालमित्रों के साथ खेल रहे थे। कैसा था वह युग, जब राजकुमार शसस्त्र सैनिकों के पहरे में सुरक्षा के नाम पर, बन्दी नहीं थे।
यह महत्ता के मद से उपजी कैद साम्राज्यवादी एकतंत्रीय राजघराने में होती है। महावीर राजकुमार तो थे, किन्तु प्रजातंत्रीय राजघराने के राजकुमार थे। प्रजातंत्र का राजा राजा होते हुए भी प्रजा ही होता है। परिवार का मुखिया क्या परिवार से मिन्न अपनी कोई अलग स्थिति रखता है ? यह प्रजातंत्र की ही देन थी कि महावीर राजकुमार हैं, फिर भी प्रजा के साधारण बच्चों के साथ बिना किसी सुरक्षात्मक पहरेदारी के वन-प्रदेश में खेल रहे हैं।
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