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महावीर की जीवन-रेखाएँ : ५
० चैत का पावन महीना था, ज्योतिर्मय शुक्लपक्ष था, सर्वसिद्धा त्रयोदशी का शुभ दिन था, भगवान महावीर का सिद्धार्थ राजा के यहाँ त्रिशालादेवी के गर्भ से भारत भूमि पर अवतरण हुआ। ० यह स्वर्णदिन जैन - इतिहास में अतीव गौरवशाली दिन माना जाता है। जैन - इतिहास ही नहीं, भारत के इतिहास में भी यह दिन स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। डबती हुई भारत की नैया के खिवैया ने आज के दिन ही हमारे पूर्वजों को सर्वप्रथम शिशु के रूप में दर्शन दिए थे। ० बालक महावीर का नाम माता-पिता के द्वारा 'वर्धमान' रक्खा गया था। परन्तु, आगे चल कर, जब वे अतीव साहसी, दढनिश्चयी और विघ्न - बाधाओं पर विजय पाने वाले महापुरुष के रूप में संसार के सामने आए, तब से 'महावीर' के नाम से जन - जन में प्रसिद्ध हो गए। पारिवारिक जीवन : ० बालक महावीर बचपन से ही होनहार थे। आपकी मेधाशक्ति बहुत ही तीव्र एवं निर्मल थी। आप अभय की तो साक्षात् सजीव मर्ति ही थे। अपका साहस अपराजित था, इस सम्बन्ध में महावीर के बाल्यकाल की कितनी ही कहानियाँ जैन - साहित्य में उल्लिखित हैं। ० वैशाली-क्षत्रियकुण्ड के एक ब्राह्मण पण्डित अपने समय के लब्धकीर्ति विद्वान थे। उनकी ख्याति दूर - दूर तक के प्रदेशों में प्रसार पा चुकी थी। शताधिक शास्त्रार्थों में उन्हें अप्रतिम विजयश्री प्राप्त हई थी।
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