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महावीर के उपदेश : ११
आत्मा को शरीर से पृथक जानकर भोग-लिप्त शरीर को धुन डालो।
आत्मा अमूर्त है, इसलिए वह इन्द्रिय-प्राह्य नहीं है। अमूर्त होने के कारण ही आत्मा नित्य है।
: २० : आत्मा और है, शरीर और है।
स्वयं ही अविजित- असंयत आत्मा ही स्वयं का प्रधाम शत्रु हैं।
यह शरीर नौका है, जीव - आत्मा उसका नाविक (मल्लाह) है और संसार समुद्र है। महर्षि इस देहरूपी नौका के द्वारा संसार - सागर को तैर जाते हैं।
स्वरूप • वृष्टि से सब आत्माएँ एक (समान) हैं।
आत्मा की दृष्टि से हाथी और कुथुआ दोनों में आत्मा एक समान है।
जीव शाश्वत भी हैं, अशाश्वत भी। द्रव्य दृष्टि ( मूलस्वरूप ) से शाश्वत ( नित्य ) हैं तथा भावदृष्टि ( मनुष्यआदि पर्याय - दृष्टि ) से अशाश्वत ( अनित्य ) हैं ।
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