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महावीर के उपदेश : १११:
: १२ : मेरा आत्मा अकेला है-मैं अकेला हूँ। न कोई मेरा है, और न मैं किसपे का हूँ।
: १३ : युद्ध करना है, तो अपनी वासनाओं से युद्ध करो। बाध युद्धों से तुम्हें क्या मिलेगा ? यदि इस बार चक मए, तो फिर आत्मजयो युद्ध का अवसर मिलनर दुर्लभ है।
: १४ : सिर काटने वाला शत्रु भी उतना अषकार नहीं करता, जितमा कि दुराचरण में आसक्त अपनी आत्मा करती है।
ज्ञान, दर्शन और चारित्र से परिपूर्ण मेरी आत्मा ही शाश्वत है, सत्य सनातन है। आत्मा के सिवा अन्य सब बाह्य भाव संयोष - मात्र हैं।
यह मेरी आत्मा औपपातिक है, कर्मानुसार पुनर्जन्म ग्रहण करती है। आत्मा के पुनर्जन्म सम्बन्धी सिद्धान्त को स्वीकार करने वाला ही वस्तुतः आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी एवं क्रियावादी है।
बह जीवात्मा अनेक बार उच्चगोत्र में जन्म ले चका है और अनेक बार नीचगोत्र में। इस प्रकार विभिन्न गोत्रों में जन्म लेने से न कोई हीन होता है, न कोई महान् ।
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