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११४ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
एगे अहमंसि, न मे अस्थि कोइ, न याऽहमति कस्स वि।
--आचारांग
इमेणमेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ ? जुज्झारिहं खलु दुल्लहं॥
-आचारांग
न तं अरी कंठछेत्ता करेइ । जं से करे अप्पणिया दुरप्पा ॥
___ -- उत्तराध्ययन
एगो मे सासओ अप्पा, नाण-दसण-संजुओ। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग-लक्खणा ।।
----संथारपइन्ना
अत्थि मे आया उववाइए......... जे आयावादी, लोयावादी, कम्मावादी, किरियावादी।
-आचारांग
से असई उच्चागोए, असई नीआगोए। नो हीणे, नो अइरिते।
-आचारांग
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