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महावीर के उपदेश : ११३
मनुष्यो ! जागो....."जागो ! अरे तुम क्यों नहीं जागते हो ? मृत्यु के बाद परलोक में अन्तर्जागरण प्राप्त होना दुर्लभ है । बीती हुई रात्रियाँ कभी लौट कर नहीं आतीं। मानव-जीवन पुनरि पाना आसान नहीं है।
जो आत्मा है, वही विज्ञाता है। जो विज्ञाता है, वही आत्मा है। क्योंकि ज्ञान के कारण ही आत्मा है, अर्थात् जड़ से भिन्न है। जानने की इस शक्ति से ही आत्मा की प्रतीति होती है।
प्रत्येक साधक प्रतिदिन चिन्तन करे कि-मैंने क्या सत्कर्म कर लिया है, और अभी क्या करना है ? कौन-सा ऐसा शक्य सत्कार्य है- जिसको मैं कर तो सकता हूं, पर कर नहीं रहा हूं।
: १० : स्वयं आत्मा ही अपने सुख - दुःख का कर्ता तथा भोक्ता है । अच्छे मार्ग पर गतिशील निज आत्मा ही अपना मित्र है, और बुरे मार्ग पर चलनेवाला निज ही अपना शत्रु है।
: ११ : मानव ! तू अपने आपको अपने वश में कर । ऐसा करने से ही तू दुःखों से छुटकारा पा सकेगा।
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